यह 12 अक्टूबर, 2005 से लागू हुआ है। (15 जून, 2005 को अधिनियमित होने के 120 दिन पश्चात्) इसके कुछ प्रावधान, अर्थात् सार्वजनिक संस्थाओं के कर्तव्य ख्एस.4(1), जन सूचना अधिकारियों और सहायक जन सूचना अधिकारियों के पदनाम ख्एस.5(1) और 5(2),, केन्द्रीय सूचना आयोग का गठन (एस.12 और 13), राज्य सूचना आयोग का गठन (एस.15 और 16), जांच तथा सुरक्षा संगठनों पर यह अधिकार लागू न किया जाना (एस.24(1), और अधिनियम की व्यवस्थाएँ लागू करने के लिए नियम बनाने के अधिकार (एस.27 और 28), तुरन्त लागू हो गए ।
यदि अधिनियम की व्यवस्थाओं को प्रभावी बनाने में किसी प्रकार की कठिनाई सामने आती है तो केन्द्रीय सरकार सरकारी राजपत्र में आदेश प्रकाशित कर आवश्यक और कठिनाई दूर करने के लिए व्यवस्था कर सकती हैं। (एस30)
केन्द्र सरकार, राज्य सरकारों तथा एस2 (ई) मंे वर्णित सक्षम अधिकारी को सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की व्यवस्थाओं के पालन के लिए नियम बनाने के अधिकार प्राप्त हैं। (एसअधिकार 27 एवं एस28)
- आरटीआई के बारे में जनता विशेषकर पिछड़े लोगों के लिए शैक्षिक कार्यक्रमों का विकास।
- सार्वजनिक संस्थाओं को ऐसे कार्यक्रमों के विकास और आयोजन के लिए प्रोत्साहन देना।
- नता को समय पर ठीक-ठीक सूचना देने को बढ़ावा देना।
- अधिकारियों को प्रशिक्षण देना तथा प्रशिक्षण साज-सामान का विकास।
- अलग-अलग सरकारी भाषा में जनता के मार्गदर्शन के लिए सूचना एकत्र करना और उसका प्रचार-प्रचार।
- पीआईओ के नाम, पदनाम, डाक पते और सम्पर्क के बारे में विवरण तथा अदा की जाने वाली फीस, तथा प्रार्थना अस्वीकृत होने पर शिकायत के निराकरण के बारे में सूचनाओं का प्रकाशन। (एस26)
इस अधिनियम के अन्तर्गत दिए गए किसी भी आदेश के खिलाफ निचली अदालतें कोई प्रार्थना या अरजी दाखिल नहीं कर सकती। (एस23) परन्तु उच्चतम कोर्ट और उच्च न्यायालयों में संविधान के अनुच्छेद 32 और 225 के अन्तर्गत याचिका दायर करने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
प्रत्येक पीआईओ को प्रतिदिन 250 रुपये का जुर्माना जो अधिकतम 25000 रुपये तक हो सकता है, किया जा सकता हैं। इनके कारण हैं
- प्रार्थना पत्र स्वीकार न करना।
- बिना किसी युक्तिसंगत कारण के सूचना देने में देरी करना।
- जान-बूझकर सूचना न देना।
- जान-बूझकर अपर्याप्त, गलत और भ्रामक सूचना देना।
- मांगी गई सूचना को मिटाना।
- किसी भी तरीके से सूचना देने में बाधा डालना।
केन्द्र तथा राज्य स्तरों पर सूचना आयोगों को दण्ड देने का अधिकार होगा। सूचना आयोग कानून का उल्लंघन करने पर गलती करने वाले पीआईओ के खिलाफ अनुशासन कार्रवाई की सिफारिश भी कर सकते हैं। (एस20)
- केन्द्रीय सूचना आयोग वर्ष के अन्त में इस कानून की व्यवस्थाओं के कार्यान्वयन के सम्बन्ध में केन्द्रीय सरकार को एक वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगा। राज्य सूचना आयोग राज्य सरकार को रिपोर्ट भेजेगा।
- प्रत्येक मंत्रालय का यह कर्तव्य है कि वह अपने सार्वजनिक संस्थानों से प्रतिवेदन जमा करे और उन्हें केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग, जैसा भी हो, के पास भेजे।
- प्रत्येक रिपोर्ट में प्रत्येक सार्वजनिक संस्था द्वारा प्राप्त प्रार्थनाओं की संख्या के सम्बन्ध में विवरण, अस्वीकृतियां और अपील, की गई अनुशासन कार्रवाई का विवरण, जमा किए गए फीस तथा शुल्क आदि शामिल किए जाएंगे।
- केन्द्रीय सरकार केन्द्रीय सूचना आयोग की रिपोर्ट प्रत्येक वर्ष के अन्त में संसद के समक्ष प्रस्तुत करेगी। सम्बद्ध राज्य सरकार राज्य सूचना आयोग की रिपोर्ट विधान सभा (और विधान परिषद, जैसा भी हो) के पटल पर रखेगी (एस25)।
- केन्द्रीय सूचना आयोग/राज्य सूचना आयोग का कर्तव्य है कि वह किसी भी ऐसे व्यक्ति से शिकायत प्राप्त करे:
- जो सूचना के लिए प्रार्थना इसलिए दाखिल नहीं कर सका क्योंकि पीआईओ की नियुक्ति नहीं की गई है।
- जिसे मांगी गई सूचना देने से इन्कार किया गया है।
- जिसे निर्धारित समय सीमा में सूचना के लिए अपनी प्रार्थना का कोई प्रत्युत्तर प्राप्त नहीं हुआ है।
- जो यह समझे कि उससे मांगी जा रही फीस तर्कसंगत नहीं है।
- जो यह मानता हो कि उसे दी गई सूचना पूरी नहीं है या गलत है या भ्रामक है, और
- इस कानून के अन्तर्गत सूचना प्राप्त करने से सम्बद्ध कोई अन्य मामला।
- यदि यथोचित आधार हों तो जांच के आदेश देने का अधिकार।
- सीआईसी/एससीआईसी के पास सिविल अदालतों के निम्न प्रकार के अधिकार होंगे:
- लोगों को उपस्थित होने के लिए बुलावा भेजने, उन्हें मौखिक या लिखित में शपथ-पत्र पर लिखित में साक्ष्य देने तथा दस्तावेज या अन्य चीजें प्रस्तुत करने को कहने के अधिकार।
- दस्तावेजों की वसूली और जांच का अधिकार।
- शपथ-पत्र पर गवाही प्राप्त करना।
- किसी अन्य अदालत या कार्यालय से सार्वजनिक रिकार्डों की प्रतियां या रिकार्ड मंगवाना।
- दस्तावेजों या गवाहों की जांच के लिए समन जारी करना।
- नियत किसी अन्य मामले में कार्रवाई।
- तथ्य का पता लगाने के लिए जांच के दौरान सीआईसी/एससीआईसी को इस कानून के अधीन सभी रिकार्ड (छूट में आने वाले रिकार्डों सहित) दिए जाने चाहिएं।
- सार्वजनिक संस्था से अपने निर्णयों का अनुसरण करवाने का अधिकार जिसमें:
- किसी विशेष प्रारूप में सूचना उपलब्ध कराना।
- सार्वजनिक संस्था को ऐसे सभी संस्थानों में जहां पीआईओ/एपीआईओ नियुक्त नहीं हैं इनकी नियुक्ति का निर्देश देना।
- सूचना और सूचना की श्रेणियों का प्रकाशन।
- रिकार्डों के प्रबंधन, रखरखाव और समाप्ति की प्रक्रिया में आवश्यक परिवर्तन करना।
- आरटीआई के अधिकारियों के प्रशिक्षण संबंधी प्रावधान में विस्तार।
- इस कानून के अनुसरण के सम्बन्ध में सार्वजनिक संस्था से वार्षिक प्रतिवेदन प्राप्त करना।
- प्रार्थी को हुई किसी भी प्रकार की क्षति अथवा हानि की प्रतिपूर्ति।
- इस कानून के अन्तर्गत दण्ड देना, या
- प्रार्थना की अस्वीकृति
नियुक्ति समिति के अध्यक्ष मुख्यमंत्री होंगे। अन्य सदस्यों में विधान सभा मंे विपक्ष के नेता औ मुख्यमंत्री द्वारा नामांकित एक कैबिनेट मंत्री होता है।
एससीआईसी/एसआईसी की नियुक्ति के लिए योग्यता वही मानी जाएगी जो केन्द्रीय आयुक्तों के लिए निश्चित है।
राज्य सूचना आयुक्त का वेतन चुनाव आयुक्त वाला ही होगा। राज्य सूचना आयुक्त का वेतन राज्य सरकार में मुख्य सचिव जितना ही होगा।
- राज्य सूचना आयोग का गठन राज्य सरकार एक गजट नोटिफिकेशन के जरिए करेगी। इसमें एक राज्य प्रमुख सूचना आयुक्त (एससीआईसी) और अधिक से 10 राज्य राज्य सूचना आयुक्त (एसआईसी) होंगें जिनकी नियुक्ति भारत के राज्यपाल करेंगे।
- इन्हें राज्यपाल प्रथम अनुसूची में बताए गए प्रारूप में पद की शपथ दिलाएंगे।
- आयोग का मुख्यालय किसी ऐसी जगह होगा जिसका निर्देश राज्य सरकार देगी। अन्य कार्यालय राज्य सरकार की स्वीकृति से राज्य के अन्य भागों में स्थापित किए जा सकते हैं।
- यह आयोग बिना किसी अन्य प्राधिकारी के निर्देश के अपने अधिकारों का निर्वाह करेगा।
- आईसी की नियुक्ति, पद का कार्यभार संभालने की तारीख से अथवा 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने, जो भी पहले होता है, 5 वर्ष की अवधि के लिए की जाएगी।
- उनका वेतन चुनाव आयुक्त वाला ही होगा। सेवा काल के दौरान इसमें ऐसा कोई भी परिवर्तन नहीं किया जाएगा जिससे आईसी नुकसान में आए।
- आईसी की नियुक्ति सीआईसी के पद पर की जा सकती है लेकिन वह कुल मिलाकर आईसी पद पर अवधि सहित 5 वर्ष से अधिक सेवा नहीं कर सकता। (एस13)
- सीआईसी की नियुक्ति, पद का कार्यभार संभालने की तारीख से अथवा 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने, जो भी पहले होता है, 5 वर्ष की अवधि के लिए की जाएगी।
- सीआईसी पुनर्नियुक्त नहीं किया जा सकता।
- उनका वेतन मुख्य चुनाव आयुक्त वाला ही होगा। सेवा काल के दौरान इसमें ऐसा कोई भी परिवर्तन नहीं किया जाएगा जिससे सीआईसी नुकसान में आए।
- सीआईसी/आईसी के लिए उम्मीदवार देश का कोई विख्यात व्यक्ति होना चाहिए जिसे विधि, विज्ञान और टेक्नोलाॅजी, सामाजिक सेवा, प्रबंधन, पत्रकारिता, जनसंपर्क माध्यम या प्रशासन में लम्बा अनुभव हो।
- सीआईसी/आईसी संसद का सदस्य या किसी राज्य अथवा केन्द्र शासित प्रदेश के विधान मण्डल का सदस्य नहीं होना चाहिए। वह किसी राजनैतिक पार्टी से सम्बद्ध या लाभ के किसी पद पर भी नहीं होना चाहिए और न ही वह अपना कोई कारोबार या रोजगार में लगा होना चाहिए।
- नियुक्ति समिति में प्रधानमंत्री (अध्यक्ष), लोक सभा मंे विपक्ष के नेता तथा प्रधानमंत्री द्वारा नामांकित एक कैबिनेट मंत्री होता है।
- केन्द्रीय सूचना आयोग का गठन केन्द्रीय सरकार एक गजट नोटिफिकेशन के जरिए करेगी।
- आयोग में एक मुख्य सूचना आयुक्त (सीआईसी) और अधिक से अधिक 10 सूचना आयुक्त (आईसी) होंगें जिनकी नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति करेंगे।
- इन्हें भारत के राष्ट्रपति प्रथम अनुसूची में बताए गए प्रारूप में पद की शपथ दिलाएंगे।
- आयोग का मुख्यालय दिल्ली में होगा। अन्य कार्यालय केन्द्रीय सरकार की स्वीकृति से देश के अन्य भागों में स्थापित किए जा सकते हैं।
- यह आयोग बिना किसी अन्य प्राधिकारी के निर्देश के अपने अधिकारों का निर्वाह करेगा।
- प्रथम अपील: निर्धारित समय सीमा के समाप्त होने से 30 दिन के भीतर सम्बद्ध सार्वजनिक संस्था में पीआईओ के पद से किसी वरिष्ठ अधिकारी को या निर्णय मिलने के दिन से 30 दिन के भीतर (अपील अधिकारी यदि ठीक समझे तो देरी माफ भी कर सकता है)।
- द्वितीय अपील: केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग, जैसा भी हो, प्रथम अपील प्राधिकारी द्वारा निर्णय दिए जाने अथवा देने के 90 दिन के भीतर (आयोग यदि पर्याप्त कारण पाता है तो देरी माफ भी कर सकता है)।
- पीआईओ के निर्णय के विरुद्ध तृतीय पक्ष प्रथम अपील प्राधिकारी के समक्ष 30 दिन के भीतर अपील दायर कर सकता है और प्रथम अपील पर निर्णय मिलने के 90 दिनों के भीतर उपयुक्त सूचना आयोग, जो दूसरा अपील प्राधिकारी भी है, के समक्ष अपील दायर कर सकता है।
- सूचना न देने को तर्कसंगत साबित करने की जिम्मेदारी पीआईओ की है।
- प्रथम अपील पर कार्रवाई प्राप्ति के दिन से 30 दिन के भीतर की जाएगी। यह अवधि यदि आवश्यक हो तो 15 दिन तक बढ़ाई जा सकती है। (एस19)
- यदि यह जानकारी न दिए जाने के अन्तर्गत छूट की श्रेणी में आती है।
- यदि यह सरकार को छोड़ किसी व्यक्ति के काॅपीराइट की अवहेलना करती है।
- निर्धारित प्रार्थना फीस युक्तिसंगत होनी चाहिए।
- यदि अतिरिक्त फीस देने की आवश्यकता है तो लिखित में इसकी सूचना दी जानी चाहिए और यह बताया जाना चाहिए कि यह राशि किस हिसाब से ली जाएगी।
- प्रार्थी उपयुक्त अपील प्राधिकारी को प्रार्थना भेज पीआईओ द्वारा वसूल की जा रही फीस के निर्णय की समीक्षा की मांग कर सकता है।
- गरीबी की रेखा से नीचे रह रहे लोगों से कोई फीस नहीं ली जाएगी।
- यदि पीआईओ निर्धारित समय सीमा में उत्तर नहीं देता तो प्रार्थी को सूचना निःशुल्क दी जाएगी।
- प्रार्थना की तारीख से 30 दिन के भीतर।
- यदि किसी व्यक्ति के जीवन अथवा स्वतंत्रता का प्रश्न हो तो सूचना 48 घण्टों में।
- यदि सूचना के लिए प्रार्थना सहायक जन सूचना अधिकारी हो दी गई है तो उत्तर देने की समय सीमा में 5 दिन जोड़ लें।
- यदि तृतीय पक्ष के हितों का संबंध है तो यह समय सीमा 40 दिन होगी। (अधिकतम अवधि ़ पक्ष को मत व्यक्त करने के लिए दिया गया समय)
- निर्धारित अवधि में सूचना देने में असफलता को सूचना न देना माना जाएगा।
- लिखित अथवा इलैक्ट्राॅनिक माध्यम से अंग्रेजी या हिन्दी या क्षेत्र की सरकारी भाषा में पीआईओ को प्रार्थना भेजे तथा उसमें मांगी गई सूचना का विवरण दें।
- यह आवश्यक नहीं है कि सूचना मांगने के कारण बताए जाएं।
- इसके लिए फीस निर्धारित की जा सकती है। (यदि गरीबी से नीचे की रेखा की श्रेणी के न हों तो)
- पीआईओ सूचना मांगने वाले व्यक्तियों की प्रार्थनाओं पर विचार करेगा और जहां प्रार्थना लिखित में नहीं हैं वहां उस प्रार्थी को प्रार्थना लिखित में देने के लिए पर्याप्त सुविधा उपलब्ध कराएगा।
- यदि सूचना किसी अन्य सार्वजनिक प्राधिकारी के पास है या उसके कार्य से सम्बद्ध है तो पीआईओ 5 दिन के भीतर उस अन्य सार्वजनिक प्राधिकारी को प्रार्थना हस्तांतरित कर देगा तथा प्रार्थी को इसकी सूचना देगा।
- पीआईओ अपने कर्तव्यों के निर्वाह के लिए किसी अन्य अधिकारी से सहायता की मांग कर सकता है।
- पीआईओ प्रार्थना प्राप्त होने पर शीघ्र से शीघ्र कार्रवाई करेगा और सूचना प्राप्त होने के 30 दिन के भीतर हर हालत में निर्धारित फीस की अदायगी पर या तो सूचना उपलब्ध कराएगा या एस8 या एस9 में बताए गए किसी कारण से प्रार्थना अस्वीकृत करेगा।
- ऐसी स्थिति में जहां मांगी गई सूचना किसी के जीवन या किसी की स्वतंत्रता से संबंधित है, वह प्रार्थना मिलने के 48 घण्टों के भीतर उपलब्ध कराई जाएगी।
- यदि निर्धारित अवधि में पीआईओ किसी प्रार्थना पर निर्णय देने में विफल होता है तो यह माना जागा कि उसने प्रार्थना अस्वीकृत कर दी है।
- ऐसी स्थिति में जब प्रार्थना अस्वीकृत की गई हो, पीआईओ प्रार्थी को निम्नलिखित सूचना देगा-;पद्ध अस्वीकृति का कारण, ;पपद्ध इस अस्वीकृति के विरुद्ध अपील दायर करने के लिए समयावधि, और ;पपपद्ध अपील प्राधिकारी संबंधी विवरण।
- पीआईओ जहां तक हो सकेगा सूचना उसी स्वरूप में उपलब्ध कराएगा जिसमें मांग की गई है बशर्ते इस पर सार्वजनिक संस्था के साधनों पर व्यर्थ दबाव न पड़ता हो या रिकार्ड के रखरखाव और सुरक्षा के लिए यह बुरा न माना जाता हो।
- यदि आंशिक सूचना की अनुमति दी जाती है तो पीआईओ प्रार्थी को एक नोटिस के जरिए यह सूचना देगा:
- क) कि प्रार्थित रिकार्ड का केवल एक अंश ही उस सूचना को छोड़ कर जो न देने की छूट के अन्तर्गत आती है, प्रदान की गई है
- ख) इस निर्णय के कारण जिसमें यह भी बताया जाएगा कि तथ्य के आधार पर क्या पता चला और उस सामग्री की उल्लेख किया जाएगा जिन पर यह निर्णय आधारित है।
- ग) निर्णय करने वाले व्यक्ति का नाम और पदनाम
- घ) उसके द्वारा आंकी गई फीस का विवरण और प्रार्थी को कितनी और फीस जमा करानी है, और
- ङ) आंशिक सूचना देने के निर्णय और फीस की अतिरिक्त राशि के सम्बन्ध में समीक्षा करवाने के उसके अधिकार।
- यदि मांगी गई सूचना को तृतीय पक्ष उपलब्ध करा रहा है या फिर तृतीय पक्ष इस सूचना को गोपनीय मानता है तो पीआईओ प्रार्थना मिलने के 5 दिन के भीतर तृतीय पक्ष को एक लिखित नोटिस भेजेगा और उसके पत्युत्तर पर विचार करेगा।
- तृतीय पक्ष को इस नोटिस के मिलने के 10 दिन के भीतर पीआईओ के समक्ष अपना मत व्यक्त करने का अवसर दिया जाएगा।
सभी प्रशासकीय यूनिटों या कार्यालयों में अधिनियम के अन्तर्गत जनता से सूचना की प्रार्थना पर सूचना देने के लिए नियुक्त नामांकित अधिकारियों को पीआईओ कहा जाता है। पीआईओ ने अपने कर्तव्य का निर्वाह करते समय यदि किसी अन्य अधिकारी की सहायता मांगी है तो उसे इस अधिनियम की व्यवस्थाओं का पालन करने के लिए सभी सहायता उपलब्ध करानी होंगी और उस अन्य अधिकारी को भी पीआईओ माना जाएगा।
तृतीय पक्ष से तात्पर्य उस व्यक्ति को छोड़ जिसने सूचना के लिए प्रार्थना की है, कोई अन्य व्यक्ति तथा सार्वजनिक संस्था हो सकती है। तृतीय पक्ष को यह अधिकार है कि वह सरकार को विश्वास में लेकर दी गई सूचनाओं पर विचार करते समय अपनी बात कह सकें। ख्एस.2 (एन) और एस.11,
दूसरी अनुसूची में विवेचित केन्द्रीय जांच और सुरक्षा एजेन्सियां, जैसे कि इंटेलिजेंस ब्यूरो, आर एण्ड ए डब्ल्यू, डायरेक्टोरेट आॅफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस, सेन्ट्रल इकानाॅमिक इंटेलिजेंस ब्यूरो, डायरेक्टोरेट आॅफ एन्फोर्समेंट, नारकोटिक्स कन्ट्रोल ब्यूरो, एविएशन रिसर्च सेन्टर, स्पेशल फ्रंटियर फोर्स, बीएसएफ, सीआरपीएफ, आईटीबीपी, सीआईएसएफ, एनएसजी, असम राइफल्स, स्पेशल सर्विस ब्यूरो, स्पेशल ब्रांच (सीआईडी) अण्डमान और निकोबार, क्राइम ब्रांच-सीआईडी-सीवी दादर और नगर हवेली तथा स्पेशल ब्रांच लक्षद्वीप पुलिस पर लागू नहीं होता। छूट पूरी तरह नहीं दी गई और इन संगठनों को भी मानव अधिकार उल्लंघन तथा भ्रष्टाचार संबंधी आरोपों के संबंध में सूचनाएं उपलब्ध करानी होती हैं। इसके अतिरिक्त मानव अधिकार उल्लंघन से सम्बद्ध सूचनाएं केन्द्रीय अथवा राज्य सूचना आयोग, जैसी भी स्थिति हो, की अनुमति पर ही प्रदान की जाती है। ख्एस.24),
इससे तात्पर्य उस प्राधिकारी या संस्था या स्वयं-शासित संस्थान से है जो निम्न के अन्तर्गत स्थापित अथवा गठित किया गया हो: ख्एस2 (एच),
संविधान के अन्तर्गत या उसके द्वारा
संसद द्वारा बनाए गए किसी अन्य कानून द्वारा
राज्य विधानमण्डल द्वारा किसी अन्य कानून द्वारा
किसी सरकार द्वारा जारी आदेश या नोटिफिकेशन के अन्तर्गत जिसमें निम्न शामिल हैं:-
क) वे संस्था जो किसी सरकार के स्वामित्व, नियंत्रण या उससे काफी हद तक वित्तीय सहायता प्राप्त करती हैं;
ख) किसी सरकार से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में काफी वित्तीय सहायता प्राप्त करने वाले गैर सरकारी संगठन।
सूचना का वह भाग जो छूट के अन्तर्गत नहीं आता और आसानी से अलग किया जा सकता है, दिया जा सकता है। ख्एस 10,
निम्नलिखित सूचना न देने की छूट है (एस8)
- वह सूचना जिससे भारत की स्वतंत्रता तथा अखण्डता पर आंच आती हो, देश के सुरक्षा रणनीति, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों पर बुरा प्रभाव पड़ता हो, किसी विदेशी राष्ट्र से सम्बन्धों पर प्रभाव पड़ता हो अथवा अपराध भावना भड़कती हो।
- ऐसी कोई सूचना जिसे प्रकाशित करने पर किसी न्यायालय या ट्रिबुनल ने स्पष्ट रूप से मनाही की हो या जिससे अदालत की अवमानना हो सकती हो।
- वह सूचना जिसे जाहिर करने से संसद या राज्य विधानमण्डल की मानहानि होती हो।
- वह सूचना जिससे किसी तृतीय पक्ष की प्रतियोगी स्थिति, जिसमें वाणिज्यिक विश्वास, व्यापारिक गोपनीयता या बौद्धिक सम्पदा, पर प्रभाव पड़ता हो। ऐसी सूचना तब तक नहीं दी जानी चाहिए जब तक की सक्षम प्राधिकारी को यह संतुष्टि न हो कि इस सूचना के जाहिर करने से वृहद जनहित को नुकसान पहुंचेगा।
- किसी के पास अमानत के तौर पर रखी गई सूचना, जब तक कि सक्षम अधिकारी को यह विश्वास न हो कि वृहद जन-हित को देखते हुए सूचना देना जरूरी है।
- किसी विदेशी सरकार से भरोसे में ली गई सूचना।
- ऐसी सूचना जिसे जाहिर करने से किसी व्यक्ति के जीवन या शारीरिक सुरक्षा पर आंच आती हो या सूचना के óोत का बोध होता हो या कानून लागू करने व सुरक्षा कारणों से दी गई जानकारी।
- वह जानकारी जिसे जाहिर करने से जांच प्रक्रिया या गिरफ्तारी या दोषियों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई में रुकावट आती हो।
- मंत्रिपरिषद्, सचिवों तथा अन्य अधिकारियों के बीच विचार-विमर्श के रिकार्ड सहित केबिनेट दस्तावेज।
- किसी के व्यक्तिगत जीवन के बारे में ऐसी सूचना जिसका किसी सार्वजनिक गतिविधि या हितों से कोई संबंध नहीं है और जो बेकार ही में व्यक्ति के निजी जीवन में दखल देते हों।
- उक्त छूट के अलावा सार्वजनिक संस्था व सूचना जारी कर सकती है जिसे बताए जाने में लाभ बताए जाने में हानि की अपेक्षा अधिक है।
वह कानून बनने के 120 दिन के भीतर निम्न प्रकाशित करेगा:
- अपने संगठन, कार्यों तथा कर्तव्यों का विवरण।
- अपने अधिकारियों व कर्मचारियों के अधिकार व कर्तव्य।
- सुपरविजन और उत्तरदायित्व सम्बन्धी विवरण सहित निर्णय करने की प्रक्रिया के लिए अपनाई जाने वाली नीति।
- अपने कार्यों के लिए नियत मानक।
- इसके कर्मचारियों द्वारा इसके कार्य करने के लिए प्रयोग किए जाने वाले नियम, विनियम, निर्देश, मैनुअल और रिकाॅर्ड। अपण् इसके नियंत्रण में और इसके पास दस्तावेजों की श्रेणियों के बारे में वक्तव्य।
- नीति निर्धारण या उसके कार्यान्वयन के सम्बन्ध में जनता से प्रतिवेदन या जनता से परामर्श के लिए निश्चित किसी व्यवस्था का विवरण।
- इसके द्वारा गठित ऐसे मण्डलों, परिषदों, समितियों तथा अन्य संस्थाओं जिनमें दो या अधिक व्यक्ति हों, के बारे में वक्तव्य। इसके अतिरिक्त यह विवरण कि क्या इन संस्थाओं की बैठकों में जनता उपस्थित हो सकती है या इन बैठकों का कार्य विवरण जनता प्राप्त कर सकती है, के सम्बन्ध में जानकारी।
- इसके अधिकारियों और कर्मचारियों की एक डायरेक्टरी।
- इसके प्रत्येक अधिकारी और कर्मचारी द्वारा प्राप्त मासिक पारिश्रमिक की राशि जिसमें इसके नियमों के अन्तर्गत क्षतिपूर्ति की राशि भी शामिल है।
- इसकी प्रत्येक एजेन्सी को आवंटित बजट जिसमें सभी योजनाओं, प्रस्तावित खर्च और अदा की गई राशियों की रिपोर्ट दी गई हो।
- सहायतार्थ कार्यक्रमों का कार्यान्वयन जिसमें इन कार्यक्रमों से लाभान्वित लोगों का विवरण और उन्हें आवंटित राशि की सूचना दी गई हो।
- इसके द्वारा रियायत, परमिट या अधिकार प्राप्त व्यक्तियों/संस्थाओं का विवरण।
- इसके पास उपलब्ध सूचना जिसमें इलेक्ट्राॅनिक स्वरूप में रखी गई सूचना भी शामिल है।
- जनता को सूचना प्राप्त करने के लिए प्राप्त सुविधाओं, जिनमें लाइब्रेरी अथवा रीडिंग रूम के कार्य घण्टे, यदि जनता के लिए ये स्थापित किए गए हैं, का विवरण।
- जन सूचना अधिकारियों के नाम, पदनाम तथा उनके बारे में अन्य विवरण। ख्एस4(1)(बी),
इसमें निम्न अधिकार शामिल हैं:
- कोई कार्य, दस्तावेज या रिकाॅर्ड की जांच।
- सामान के प्रमाणित सेम्पल लेना।
- किसी अन्य इलेक्ट्राॅनिक स्वरूप में अथवा प्रिन्टआउट या वीडियो कैसेट, टेप, फ्लाॅपी डिस्क में सूचना प्राप्त करना।
यह अधिनियम जम्मू तथा कश्मीर राज्य को छोड़ पूरे देश पर लागू होता है। ख्एस.(12),
सूचना से तात्पर्य ऐसे सभी सामान जिनमें रिकार्ड, दस्तावेज, मीमो, ई-मेल, परामर्श, सलाह, पै्रस विज्ञप्ति, परिपत्र आदेश, लाॅग पुस्तिका, ठेके, प्रतिवेदन, शोध पत्र, माॅडल, सेम्पल, आंकड़े चाहे वे इलेक्ट्राॅनिक स्वरूप में हों या किसी अन्य रूप में, से है जो किसी निजी संस्था से सम्बद्ध है और किसी सार्वजनिक संस्था द्वारा किसी अन्य कानून के अंतर्गत उस समय प्राप्त किया जा सकता है। ख्एस.2 (एफ), ।
यह 12 अक्टूबर, 2005 से लागू हुआ है। (15 जून, 2005 को अधिनियमित होने के 120 दिन पश्चात्) इसके कुछ प्रावधान, अर्थात् सार्वजनिक संस्थाओं के कर्तव्य ख्एस.4(1), जन सूचना अधिकारियों और सहायक जन सूचना अधिकारियों के पदनाम ख्एस.5(1) और 5(2),, केन्द्रीय सूचना आयोग का गठन (एस.12 और 13), राज्य सूचना आयोग का गठन (एस.15 और 16), जांच तथा सुरक्षा संगठनों पर यह अधिकार लागू न किया जाना (एस.24(1), और अधिनियम की व्यवस्थाएँ लागू करने के लिए नियम बनाने के अधिकार (एस.27 और 28), तुरन्त लागू हो गए ।
सेल भारत सरकार का सार्वजनिक क्षेत्र का एक प्रतिष्ठान है तथा सेल के पास 85.82% शेयर हैं। अन्य प्रमुख शेयरधारक वित्तीय संस्थान हैं जिनके पास 3.68% शेयर हैं। पूर्ण विवरण के लिए कृपया शेयरधारक स्थिति का अवलोकन करें ।
रक्षा तथा रेलवे जैसे संस्थागत उपभोक्ताओं को अपने सभी उत्पादन उपलब्ध कराने के अतिरिक्त सेल निम्नलिखित क्षेत्रों के विभिन्न उपभोक्ताओं की विविध आवश्यकताओं की भी पूर्ति कर रहा है:
- परियोजनाएँ
- निर्माण
- फेब्रिकेशन
- भारी इंजीनियरी
- ट्यूब निर्माता
- कोल्ड रिड्यूसर
- मोटर-गाड़ी उद्योग
- साइकिल
- ड्रम एवं बैरल
- कंटेनर
- एयर कंडिशनर, रेफ्रीजरेटर आदि (वाइट गुड्स)
- परिवहन (तेल/गैस/जल)
- परत चढ़ी शीटों के निर्माता
- खेती-बाड़ी के काम आने वाले उपकरण